 
                    जियो और जीने दो
कवि अपने इस काव्य संग्रह ‘‘जीओ! और जीने दो’’ में, वर्तमान में आर्थिक सामाजिक एवं राजनीतिक परिवेशों में हो रहे विघटनों के प्रति अपनी चिंता व्यक्त करता है। वह कहता है कि आज आम लोग सब तरह से प्रभावित एवं प्रताड़ित हो रहे हैं। उन्हें अनेकों तरह की यातनायें भुगतनी पड़ रही हैं। नैतिकता का घोर पतन हो गया है। कवि देश की स्वतंत्रता, एकता, अखंडता और सुरक्षा के प्रति सजग और सचेत है। वह चाहता है कि देश सभी क्षेत्रों में विकास करे, देश स्वावलम्बी बने, प्रगति की चोटी पहुंचे, आतंकवाद नष्ट हो एवं सीमायें सुरक्षित रहें। आज परीक्षणों के चलते धरती रह-रह कर कांपती रहती है। बमों के विस्फोटों से विश्व का पर्यावरण विनष्ट हो रहा है। जंगल कट रहे हैं। पर्वत टूट रहे हैं। नदियाँ और हवायें प्रदूषित हो रहीं हैं। लोग अनेकों बीमारियों से ग्रसित हो असमय मर रहे हैं। विश्व अभी भी ‘‘कोरोना’’ के चपेट में है। कितने करोड़ लोग मर चुके हैं। लाखों बीमार हैं। अभी भी लोग मर रहे हैं। भारत ने ‘‘कोरोना’’ की दवा ‘‘कोरोना वैक्सीन’’ तैयार कर ली है। आधुनिकता भले हीं आसमान की ऊंचाई को छू रहा हो, लेकिन विश्व का अस्तित्व खतरे में है। तीसरा विश्वयुद्ध कभी भी हो सकता है।
| ISBN: | 978-81-948859-6-2 | 
| Genre: | काव्य संग्रह | 
| Language: | हिंदी | 
| Pages: | 128 | 
| Size: | 5.5x8.5 | 
| Paperback: | |
| BUY NOW: |      | 
| eBook: | |
| BUY NOW: |      | 
 manojvmind@gmail.com
 manojvmind@gmail.com +91 7523910019
 +91 7523910019